दोस्तो, इस आर्टिकल की शुरुआत हम स्वामी विवेकानंद जी का दिलचस्प जवाब से करेंगे । मनोरोचक अध्यात्मिक विज्ञान समझाने का प्रयास किया गया है । कृपया इस आर्टिकल को अंतिम सेकेंड तक पढ़े । इस आर्टिकल के टाइटिल को देख कर ये न समझें कि इस आर्टिकल में सिर्फ स्वामी विवेकानंद के बारे में है बल्कि इस आर्टिकल में बहुत सारी बातें हैं जो कहीं भी सुनने को नहीं मिलती है । आर्टिकल पढ़ने से पहले हम अपने गुरुजनों को प्रणाम करते हैं । बहुत सारे लोग स्वामी विवेकानंद की मृत्यु को लेकर कई सारे सवाल उठाते हैं । कोई कहता है इतने बड़े ब्रह्मचारी थे तो क्यों इतनी जल्दी 39 वर्ष की आयु में मौत हुई । कोई कहता है उनके शरीर में तमाम सारी बीमारी लग गई थी जो उनकी जान ली गई । लोग इस तरह के सवाल तो बड़ी आसानी से उठाते हैं पर स्वामी विवेकानंद के जीवन और कर्म को पढ़ने की कोई कोशिश नहीं करते हैं । आज हम उन सारे सवालों का जवाब देते हुए ये बताएंगे कि स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के 5 कारण थे । उससे पहले हम कुछ लोगों के दिमाग में सालों से जमी हुई वायरस की तरह खतरनाक गलतफहमी को दूर करना चाहते हैं । गलतफहमी ये है ब्रह्मचारी को कोई रोग नहीं हो सकता । ब्रह्मचारी अमर होता है कभी मर नहीं सकता । ये बहुत बड़ी गलतफहमी है । इस गलतफहमी को दूर करने के लिए और स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के कारण को जानने के लिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े । मनुष्य का शरीर पंच महाभूत जैसे आग, पानी, पृथ्वी, आकाश, वायु, तत्व से बना हुआ है और ये टेम्पररी है बाहर ही जो शरीर दिख रहा है उसे कहते हैं अन्य में कोर्स । इसके अलावा और चार कोर्स इसके अंदर हैं जिन्हें कहते हैं प्राणमय कोष, मनोमय कोस, विज्ञानमय कोस, आनंदमय कोस, इन चारों कोसो को मिलाकर एक नाम दिया जाता है । उसे कहते हैं सूक्ष्म शरीर अर्थात (Astral body) । अब ध्यान दीजिए स्थूल शरीर को यानी की अन्य मय कोष को चलाने के पीछे सूक्ष्मशरीर का हाथ है । सूक्ष्म शरीर को चलाने के पीछे Spirit यानी की आत्मा का हाथ है । हम इसके ऊपर अधिक चर्चा तो नहीं करेंगे पर इतना जरूर बताएंगे तूल शरीर को अगर मेन्टेन नहीं किया जाता है तो उसका असर सूक्ष्म शरीर में होता है क्योंकि सूक्ष्म शरीर के स्वास्थ्य के लिए स्थूल शरीर में अच्छी व्यवस्था हर कीमत पर चाहिए । जब स्थूल शरीर की व्यवस्था खराब होती है तो सूक्ष्म शरीर के साथ साथ आत्मा के लिए भी उस शरीर रहने लायक नहीं होता है । बहुत सारे योगी अपनी योग शक्ति से हजारों साल तक अपने शरीर को जिंदा रखते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । ये एक अलग विषय है पर कुछ महान संत जैसे स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद सरस्वती योग शक्ति को अपने शरीर के लिए खर्च नहीं करते हैं । केवल काम करने में विश्वास करते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों का भला हो सके । ऐसे महान संत दुनिया को ऐसी सीख देते हैं जीवन में ध्यान और अच्छा काम दोनों होना आवश्यक है । ध्यान एक ऐसी क्रिया है जो हमारी शांति सत्य और ऊर्जा को बढ़ाता है ताकि हम जीवन भर अपने लिए और औरों के लिए कुछ अच्छा काम कर सकें और जिंदगी को बेहतरीन ढंग से जी सकें ।
स्वामी विवेकानंद की जल्दी मृत्यु के पांच कारण को जानने से पहले उनके जीवन के कुछ खास सफर पर हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं ।
कृपया ध्यान से पढे ये सब आपको कहीं नहीं मिलेगा। 11 सितंबर 1893 में अमेरीका के शिकागो में हुए वर्ल्ड रिलिजियस पार्लियामेंट के दौरान स्वामी विवेकानंद की स्पीच ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया । वहीं से उनको कहा जाता है "साइक्लोनिक मोंक इंडिया" वर्ल्ड रिलिजियस पार्ल्यामेंट की स्पीच के बाद उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई कि अमेंरीका यूरोप समेत इंग्लैण्ड आदि कई पश्चिमी देशों में लेक्चर देने में तीन साल के लिए बहुत व्यस्त हो गए । आखिरकार उन्होंने 15 जनवरी 1897 को भारत में फिर से कदम रखा । यहीं से उनका स्वास्थ्य बिगड़ना चालू हुआ था जिसको स्वामी विवेकानंद ने नजरअंदाज कर दिया था । खराब स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने 1897 से 1899 तक पूरे भारत में भ्रमण किया था और लोगों को वेदान्त योग ध्यान संस्कृति और कर्तव्य के मार्ग पर प्रेरित किया था । उन्होंने अपने स्वास्थ्य को संभालने की कोशिश भी की थी पर मातृभूमि और धर्म के कर्तव्य के सामने खराब स्वास्थ्य कोई मायने नहीं रखता था । उन्होंने फिर से जानलेवा डिसीजन लिया और इसी हालत में दुबारा जून 1899 को यूरोप इंग्लैण्ड समेत अमेरीका आदि देशों में भ्रमण किया और लोगों को जागरूक किया । करीब डेढ़ साल बाद फिर से भारत के कलकत्ता में कदम रखा । अब तक उनका स्वास्थ्य बहुत ही बिगड़ चुका था । आखिर उनका स्वास्थ्य इतने बिगड़ने के पीछे कारण क्या है । आइए जानते हैं ।

स्वामी विवेकानंद के स्वास्थ्य बिगड़ने के पांच कारण जिसकी वजह से उन्होंने अपना शरीर छोड़ने का फैसला किया ।



(1) खराब खानपान स्वामी विवेकानंद के बहुत ज्यादा घूमने के कारण उनको जहां से जैसा मिल गया खा लिया । भले ही वो मांस मछली क्यों न हो । उनका ध्यान अपने लक्ष्य पर टिका था कि मुझे बहुत जल्दी अपना काम पूरा करना है । वो अपने को शरीर नहीं मानते थे । वो कहते थे मैं एक आत्मा हूं कभी कम खाना कभी नहीं खाना कभी अस्वस्थ खाना कभी उनको खाना पड़ता था जो उनकी मजबूरी थी इस कारण से उनको डायबिटीज हो गई थी फिर भी उनको अपने इलाज से ज्यादा देशवासियों की समस्याओं के इलाज में रुचि थी ।

(2) बार बार हवा पानी बदलते थी क्यूंकि वो कभी रुके नहीं। एक जगह से दूसरी जगह चले गए चलते गए चलते गए । इस आदत से उनको "क्रोनिक इसनिमोनिया" हो गया था जो ठीक ही नहीं होता था । साथ ही वे अस्थमा के शिकार हो गए थे । वे चाहे तो ठीक कर सकते थे पर ऊंचे लक्ष्य को लेकर उन्होंने शरीर को बहुत अनदेखा किया ।

(3) श्री स्वामी विवेकानंद न सिर्फ शारीरिक परिश्रम करते थे बल्कि उनकी तरह मानसिक परिश्रम कोई नहीं कर सकता था । रात दिन वे देश की हर समस्याओं की चिंता करते थे गरीबों को देकर अपना खाना छोड़ देते थे । अत्यधिक मानसिक परिश्रम और लेक्चर के कारण वे बहुत ज्यादा थक जाती थी फिर भी कभी चैन की साँस नहीं लेते थे और ये वजह खराब स्वास्थ्य का कारण बना ।

(4) स्वामी विवेकानंद ने अपने धर्म और देश के खातिर कभी भी ठीक से विश्राम नहीं किया जो शरीर की जरूरत है जिसके बिना शरीर को ऊर्जा मिलना मुश्किल है । शरीर को ठीक से नींद नहीं मिलने की वजह से हालत और खराब हुई ।

(5) स्वामी विवेकानंद योग और वेदांत का अनुपम संदेश देते थे जो उनके जीवन के रग रग में बसा हुआ था । फिर भी सिर्फ ध्यान को छोड़कर ज्यादा योग का अभ्यास नहीं कर पाते थे जबकि वे योग सिद्धि योग प्रयोग सीधे अपने शरीर को ठीक कर सकते थे पर उनको अंत समय में ऐसा लगा शरीर रहने लायक अब नहीं रहा । उन्होंने अपने शरीर को अपनी इच्छा से छोड़ने का मन बना लिया ।

4 जुलाई 1902 के दिन स्वामी विवेकानंद बहुत जल्दी उठ गए और वेल्लूर मठ में रोज की तरह उन्होंने अपने शिष्यों को संस्कृत और वेदों की शिक्षा दी । शाम 7 बजे अपने कमरे में चले गए और बोले कोई भी दरवाजा न खोलें क्यूंकि मैं गहरे ध्यान में जा रहा हूं ।  दोस्तो, ये होती है (Meditation) रात 9 बजकर 20 मिनट पर ध्यान अवस्था में ही उनका देहान्त हो गया । शिष्यों का कहना है उनके ब्रेन का एक ब्लडवेसल टूटा हुआ था और यह वही जगह है जिसको कहते हैं 'बरहम्रंड' जो सहस्रार चक्र का द्वार है । स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कोई आम मृत्यु नहीं है बल्कि महासमाधि है क्यूंकि ध्यान अवस्था में अपनी इच्छा से अपने प्राण को बरहम्रंड से बाहर ले जाने का काम सिर्फ सिद्ध योगी ही कर सकते हैं । इस तरह की सिद्धि सिर्फ़ ब्रह्मचर्य से ही आती है । स्वामी विवेकानंद ने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि मेरा 40 साल तक बच पाना संभव नहीं है जिसको उन्होंने सच साबित कर दिया । अब आप ध्यान से सुनी 100 साल या 1000 साल जिन्दा रहना कोई बड़ी बात नहीं है बल्कि इन्सान 100 दिन भी जीकर कुछ अच्छा काम करता है । दूसरों का भला करता है तो वो सौ दिन भी हजार साल के बराबर है । इंसान की उम्र कितनी है ये बड़ी बात नहीं है पर इंसान का ज्ञान और उसके कर्म कैसे हैं ये बहुत मायने रखता है । इंसान अपने अच्छे कर्म से ही अपनी मातृभूमि और मां की कोख को धन्य कर सकता है। धन्य कर सकता है जिसके जीवन में ऐसा लक्ष्य है ब्रह्मचर्य के साथ साथ सारे काम आसान हो सकते हैं क्यूंकि उसके लिए ईश्वर और कुदरत दोनों खड़े रहते हैं । स्वामी विवेकानंद की तरह बहुत व्यक्तित्व आते हैं जो ब्रह्मचर्य के बल पर अनोखे काम को अंजाम देते हैं तो सब सबके बस की बात नहीं है । उनका जब काम पूरा हो जाता है तो शरीर छूटने का कोई बहाना बन जाता है । साधारण मनुष्य को बीमारी नजर आती है पर आध्यात्मिक व्यक्ति को नियति का खेल नजर आता है । पर चाहे कुछ भी हो इतने कम उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने ढेर सारे पावरफुल लेक्चर और किताबों के माध्यम से लोगों को जो अपना लक्ष्य दिखाने का काम किया तो सब कोई नहीं कर सकते हैं । आम लोगों की ये मानसिकता होती है । जब तक कोई महापुरुष जिंदा रहता है लोग उनकी अहमियत को पूरी तरह नहीं समझ पाते हैं । उनका अपमान भी करते हैं । पर जब वो महापुरुष चले जाते हैं लोग उनकी पूजा और आदर करते हुए उनकी बातों का अमल करते हैं । इसी कारण से सही समय पर नीति का बुलावा आता है और वो महापुरुष अपने ज्ञान और कर्म के उदाहरण को छोड़कर इस दुनिया से चली जाती हैं ।
तो दोस्तो, कैसा लगा आपको स्वामी विवेकानंद जी की बारे में जान कर। शरीर को छोड़ना कोई आम बात नहीं है ये सिर्फ सिद्ध योगी ही कर सकते है। जीवन में सब कुछ संभव है बरह्मचर्या से। ब्रह्मचर्य ही जीवन है। इसे पालन करके को मजा है वो संसार के कोई चीज में नहीं है। रोज सुबह 20 मिनट अपने शरीर को से सिर्फ 20 मिनट।

धन्यवाद दोस्तो।
मिलता हूं अगले आर्टिकल के साथ मै अगले बार एक ऐसे एक्टर के बारे में लिखने वाला हूं जो कि ब्रह्मचर्य के बारे में बोलती है। की ब्रह्मचर्य ही जीवन है। उनका नाम आपको अगले आर्टिकल में पता चलेगा। आपको उन्हें सुनने के बाद विश्वास हो जाएगा। दोस्तो, आज नहीं तो कल आपको मानना ही पड़ेगा। ब्रह्मचर्य ही जीवन है। आगे ये आर्टिकल अपनें नहीं पढ़ी है तो जा कर पढ़ ले। ब्रह्मचर्य ही जीवन है को क्लिक करके में इसमें लिंक दे दे रहा हूं।